तबला वादक उस्ताद जाकिर हुसैन का निधन, संगीत जगत ने खोया एक नायाब सितारा
विश्व प्रसिद्ध तबला वादक और पद्म विभूषण से सम्मानित उस्ताद जाकिर हुसैन का सोमवार सुबह 73 वर्ष की आयु में निधन हो गया। उनके असमय निधन से संगीत और कला जगत में शोक की लहर दौड़ गई। जाकिर हुसैन ने तबले की थाप से भारतीय शास्त्रीय संगीत को वैश्विक मंच पर एक नई पहचान दिलाई।
पारिवारिक विरासत:
जाकिर हुसैन का जन्म 9 मार्च 1951 को मुंबई में हुआ था। उन्हें संगीत की विरासत उनके पिता उस्ताद अल्ला रक्खा खान से मिली, जो स्वयं एक विख्यात तबला वादक थे। जाकिर ने महज 11 साल की उम्र में अमेरिका में अपना पहला कॉन्सर्ट कर अपनी प्रतिभा का परिचय दिया।
अंतरराष्ट्रीय पहचान और उपलब्धियां:
- जाकिर हुसैन ने 1973 में अपना पहला एलबम ‘लिविंग इन द मैटेरियल वर्ल्ड’ रिलीज़ किया।
- उन्होंने अपने जीवनकाल में कुल 5 ग्रैमी पुरस्कार जीते।
- पहला ग्रैमी 1992 में एल्बम ‘प्लैनेट ड्रम’ के लिए मिला।
- 2009 में ‘ग्लोबल ड्रम प्रोजेक्ट’ के लिए दूसरा ग्रैमी मिला।
- 2024 में 66वें ग्रैमी अवार्ड्स में उन्हें तीन पुरस्कार मिले:
- ‘पश्तो’ के लिए।
- ‘ऐज वी स्पीक’ एल्बम के लिए बेस्ट कंटेम्पररी इंस्ट्रूमेंटल एल्बम।
- ‘दिस मोमेंट’ एल्बम के लिए।
राष्ट्रीय पुरस्कार:
- 1988 में ‘पद्म श्री’।
- 2002 में ‘पद्म भूषण’।
- 2023 में ‘पद्म विभूषण’ से सम्मानित।
तबले का जादू:
जाकिर हुसैन ने तबले पर अपनी अद्भुत अंगुलियों की थाप से दुनियाभर के संगीत प्रेमियों को मंत्रमुग्ध किया। उनकी कृतियों ने भारतीय शास्त्रीय संगीत को वैश्विक पहचान दिलाई।
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कला जगत में शोक:
उनके निधन से कला और संगीत जगत में गहरी क्षति हुई है। उनकी अनुपस्थिति भारतीय संगीत परिदृश्य में एक अपूर्णीय खालीपन छोड़ गई है।
उस्ताद जाकिर हुसैन का जीवन और उनकी उपलब्धियां हमेशा संगीत प्रेमियों के दिलों में जिंदा रहेंगी।