महाकुंभ 2025 में एक अनोखी कहानी का साक्षी बनने जा रहा है। फ्रांस की प्रतिष्ठित सारबोर्न यूनिवर्सिटी के गणित के प्रोफेसर फेड़िक ब्रूनो ने अपनी परिवारिक और पेशेवर जिंदगी को पीछे छोड़ते हुए आध्यात्म की राह पकड़ ली है। जूना अखाड़े की दशनामी परंपरा के तहत ब्रूनो अब नागा संन्यासी बन चुके हैं और महंत ब्रूनो गिरि के रूप में पहचाने जा रहे हैं।
गणित से गंगा तक का सफर
कभी गणित के गूढ़ सिद्धांतों में रुचि रखने वाले प्रोफेसर ब्रूनो आज गंगा की रेती पर आध्यात्मिक साधना में लीन हैं। उन्होंने जूना अखाड़े के गुरुओं से दीक्षा लेकर नागा संन्यासी का जीवन अपनाया है। वह महाकुंभ के दौरान अखाड़े की छावनी में कल्पवास करेंगे और धूनी रमाएंगे।
परिवार और दुनिया का परित्याग
तीन बच्चों और पत्नी वाले प्रोफेसर ब्रूनो ने अपने भरे-पूरे परिवार और गणित की दुनिया को अलविदा कह दिया। उन्होंने गणित की जटिलताओं को पीछे छोड़कर अब प्रेम, शांति, और भक्ति का मार्ग चुना है। ब्रूनो का कहना है कि अंकों के गुणा-भाग ने अब उनकी दिलचस्पी खत्म कर दी है, और अब उनका पूरा जीवन ईश्वर की आराधना और सनातन संस्कृति के प्रचार-प्रसार में समर्पित है।
महंत ब्रूनो गिरि की नई पहचान
जूना अखाड़े के महंत घनानंद गिरि को गुरु मानने वाले ब्रूनो ने संन्यास की दीक्षा ग्रहण की और महंत ब्रूनो गिरि के रूप में पहचाने जा रहे हैं। उनका यह निर्णय आध्यात्मिकता के प्रति उनके गहरे लगाव और सनातन संस्कृति से प्रभावित होने का परिणाम है।
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महाकुंभ 2025 ब्रूनो की इस प्रेरणादायक यात्रा का साक्षी बनेगा, जो दिखाता है कि आध्यात्मिकता की ताकत किसी भी सीमा और जीवन शैली को बदलने की क्षमता रखती है।