संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय कैबिनेट ने ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ विधेयक को मंजूरी दे दी। अब यह विधेयक शीतकालीन सत्र में पेश किया जा सकता है। इस विधेयक का आधार पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में गठित समिति की 191 दिनों में तैयार की गई रिपोर्ट है।
क्या है ‘एक देश, एक चुनाव’?
यह प्रस्ताव लोकसभा, विधानसभा, और स्थानीय निकायों के चुनाव एक साथ कराने पर केंद्रित है। समिति ने इसे दो चरणों में लागू करने की सिफारिश की है:
- पहले चरण में लोकसभा और विधानसभा चुनाव।
- दूसरे चरण में स्थानीय निकाय चुनाव।
अन्य देशों का अनुभव
रिपोर्ट में दक्षिण अफ्रीका, स्वीडन, जर्मनी, जापान, इंडोनेशिया जैसे देशों में एक साथ चुनाव की प्रक्रिया का अध्ययन किया गया।
- दक्षिण अफ्रीका: नेशनल असेंबली और प्रांतीय विधानमंडल के चुनाव एक साथ होते हैं।
- स्वीडन: संसद, काउंटी और नगर परिषद के चुनाव चार साल के चक्र में होते हैं।
- इंडोनेशिया: राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और राष्ट्रीय प्रांतीय सभाओं के चुनाव एक साथ होते हैं।
सिफारिशें और सुधार
कोविंद समिति ने रिपोर्ट में समान मतदाता सूची और एक कार्यान्वयन समूह के गठन का सुझाव दिया। प्रस्ताव के कार्यान्वयन के लिए 18 संवैधानिक संशोधन आवश्यक होंगे।
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पक्ष और विपक्ष की राय
- भाजपा: विधेयक को समय की मांग बताते हुए इसे वित्तीय और प्रशासनिक दृष्टि से लाभदायक बताया।
- विपक्ष: इसे अलोकतांत्रिक बताते हुए कानून का विरोध किया। ममता बनर्जी और हेमंत सोरेन ने इसे भाजपा का एजेंडा करार दिया।