शक्तिकांत दास का आरबीआई गवर्नर के रूप में कार्यकाल भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए बेहद महत्वपूर्ण रहा। दिसंबर 2018 में उर्जित पटेल के इस्तीफे के बाद, दास ने आरबीआई के 25वें गवर्नर के रूप में कार्यभार संभाला। एक पेशेवर नौकरशाह से केंद्रीय बैंक के मुखिया बनने तक की उनकी यात्रा कई उपलब्धियों से भरी रही। उनका दूसरा तीन वर्षीय कार्यकाल 10 दिसंबर को समाप्त हो रहा है, और अब उनकी जगह संजय मल्होत्रा को नया गवर्नर नियुक्त किया गया है।
दास की प्रमुख उपलब्धियां
नोटबंदी और जीएसटी जैसे बड़े फैसलों के क्रियान्वयन में शक्तिकांत दास का अहम योगदान रहा। नवंबर 2016 की नोटबंदी और जुलाई 2017 में जीएसटी के लागू होने के दौरान दास आर्थिक मामलों के सचिव थे। उन्होंने इन दोनों फैसलों को जमीन पर उतारने में सरकार के साथ बेहतर समन्वय स्थापित किया।
कोविड-19 महामारी के दौरान नेतृत्व
दास ने कोविड महामारी के कठिन दौर में मौद्रिक नीतियों का ऐसा प्रबंधन किया, जिससे अर्थव्यवस्था को मजबूती मिली। उन्होंने रेपो रेट को ऐतिहासिक रूप से कम रखते हुए लॉकडाउन से प्रभावित उद्योगों को राहत दी। उनके नेतृत्व में आरबीआई ने मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने और विकास दर को 7% से अधिक बनाए रखने में सफलता पाई।
सरकार और आरबीआई के बीच समन्वय
उनके कार्यकाल में सरकार और आरबीआई के बीच टकराव के कोई प्रमुख मामले सामने नहीं आए। दास ने सरकार को 2.11 लाख करोड़ रुपये का रिकॉर्ड लाभांश प्रदान किया।
- Advertisement -
दास का अनुभव और योगदान
1980 बैच के आईएएस अधिकारी दास ने अपने 38 वर्षों के प्रशासनिक अनुभव का उपयोग आरबीआई के गवर्नर के रूप में प्रभावशाली नीतियों के निर्माण में किया। वित्त मंत्रालय में लंबे समय तक सेवा देने के बाद, वह 15वें वित्त आयोग के सदस्य और भारत के जी20 शेरपा भी रहे।
शक्तिकांत दास ने अपनी दूरदर्शिता, निर्णय लेने की क्षमता, और नेतृत्व कौशल से आरबीआई और भारतीय अर्थव्यवस्था पर एक स्थायी छाप छोड़ी है।