दीपावली के पर्व पर परंपरा के नाम पर जुआ खेलने का सिलसिला जारी है। दिलचस्प बात यह है कि यह खेल हर रोज जुआ खेलने वाले जुआरी नहीं बल्कि परंपरा के नाम पर खेलने वाले विशेष जुआरी खेलते हैं। जुआरी इतनी चालाकी से खेलते हैं कि एक नजर अपने पैसों और खेल पर तो दूसरी नजर हमेशा पुलिस पर रहती है।
जुआ खेलने के दौरान पुलिस के आ जाने पर जुआरी एक ही पल में गायब हो जाते हैं। शहर के कई इलाकों में बैंक, फर्री, माताजी, और पासों का खेल चल रहा है। अलसुबह से लेकर देर रात तक जुआरी “खेल है क्या” की आवाजों के बीच नजर आते हैं। दीपावली से एक सप्ताह पहले ही इस खेल की शुरुआत हो जाती है, और इसे पूरी ईमानदारी के साथ खेला जाता है। इस दौरान बाकायदा एक कैशियर की भी व्यवस्था रहती है, जो पैसों का लेनदेन करता है।
पुलिस की जानकारी में होने के बावजूद कार्रवाई नदारद
पुलिस को इन जुए के अड्डों की पूरी जानकारी होने के बावजूद कार्रवाई नहीं हो पाती। हर थाना क्षेत्र में चल रहे जुए का पता होने के बावजूद, पुलिस की गाड़ी के पहुंचते ही जुआ बंद हो जाता है। गली-मोहल्लों में चल रहे इन सीजनल जुआरियों को पुलिस गिरफ्तार नहीं कर पाती, और इस तरह परंपरा के नाम पर जुए का खेल बिना किसी रोक-टोक के चलता रहता है।

