


चंद्रयान-3 की सफलता के बाद, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) अब चंद्रयान-4 मिशन की तैयारी में जुटा है। इस मिशन का उद्देश्य चंद्रमा की सतह से मिट्टी और चट्टानें एकत्रित कर पृथ्वी पर वापस लाना है। केंद्र सरकार ने इस अभियान को मंजूरी दी है और इसके लिए 2104 करोड़ रुपये का बजट आवंटित किया गया है। इसे 2040 तक भारत द्वारा चंद्रमा पर मानव मिशन भेजने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।
इसरो प्रमुख एस. सोमनाथ ने कहा, “चंद्रयान-3 की कामयाबी ने हमें चंद्रमा पर एक सुरक्षित स्थान पर लैंडिंग का अनुभव दिया है। अब अगला लक्ष्य सुरक्षित रूप से चंद्रमा पर उतरने के बाद वापस लौटना है। यह मिशन चंद्रयान-3 की तुलना में अधिक जटिल होगा।”
चंद्रयान-4 मिशन की विशेषताएं
चंद्रयान-4 मिशन में दो रॉकेट—एलएमवी-3 और पीएसएलवी—का उपयोग किया जाएगा। ये रॉकेट चंद्रमा पर विभिन्न उपकरणों को भेजेंगे जो सतह से नमूने इकट्ठा करेंगे और फिर उन्हें एक सुरक्षित बॉक्स में रखकर वापस पृथ्वी पर लाएंगे। इस मिशन की सफलता से भारत अंतरिक्ष अनुसंधान में एक और महत्वपूर्ण कदम उठाएगा।
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वरिष्ठ वैज्ञानिक टी.वी. वेंकटेश्वरन ने बताया कि चंद्रमा की सतह से नमूने एकत्र करना भारत के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है। उन्होंने बताया, “चंद्रमा की सतह से लाए गए नमूने न केवल चंद्रमा के इतिहास और संरचना को समझने में मदद करेंगे, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वैज्ञानिक सहयोग को भी बढ़ावा देंगे।”
दुनिया के अन्य देशों की उपलब्धियां
अब तक अमेरिका, रूस, और चीन जैसे देशों ने चंद्रमा से मिट्टी और चट्टानों के नमूने एकत्र किए हैं। इन नमूनों ने चंद्रमा के इतिहास, उसकी संरचना, और सतह की उम्र के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी दी है। उदाहरण के तौर पर, अमेरिकी अपोलो मिशन के नमूनों ने यह बताया कि चंद्रमा की सतह पर बेसाल्ट चट्टानें लगभग 3.6 अरब साल पुरानी हैं।
चंद्रयान-4 का मिशन चंद्रमा के बारे में अधिक जानकारी जुटाने और भविष्य के मिशनों के लिए उपयोगी संसाधनों का पता लगाने में सहायक साबित होगा।