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श्रीलंका चुनाव: राजपक्षे परिवार की सत्ता में वापसी की संभावना कितनी?

editor
editor Published September 18, 2024
Last updated: 2024/09/18 at 2:53 PM
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दो साल पहले श्रीलंका के राष्ट्रपति का पैलेस दुनियाभर में सुर्ख़ियाँ बटोर रहा था.

Contents
क्या राजपक्षे परिवार की कहानी ख़त्म हो चुकी है?महिंदा राजपक्षे के बेटे नमल राष्ट्रपति पद के लिए मैदान मेंरनिल विक्रमसिंघे पर राजपक्षे परिवार को बचाने के आरोप कितने सहीविक्रमसिंघे सरकार के कड़े क़दमक्या नमल राजपक्षे चुनाव जीत पाएंगे?नमल राजपक्षे की रणनीति क्या है

पैलेस के स्विमिंग पूल में आम लोग ख़ुशियाँ मनाते नहा रहे थे.

आसपास खड़े लोगों का हुजूम मशहूर पापेयर बैंड की धुन पर नाच रहा था.

बैंड के लोग पाइप और ड्रम से उत्सवों में बजाई जाने वाली धुन बजा रहे थे.

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13 जुलाई 2022 को श्रीलंका के राष्ट्रपति के पैलेस में घुस आई भीड़ के बाद ये दृश्य पूरी दुनिया में दिखे.

दरअसल श्रीलंका के लोगों के ज़बरदस्त आंदोलन के बाद तत्कालीन राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे को देश छोड़ कर भागना पड़ा था.

इसके बाद ग़ुस्साई भीड़ उनके पैलेस में घुस आई थी.

क्या राजपक्षे परिवार की कहानी ख़त्म हो चुकी है?

उस साल इस घटना से चंद दिन पहले पूरे श्रीलंका में लाखों लोगों ने शांतिपूर्ण ढंग से राष्ट्रपति के पैलेस की ओर कूच शुरू कर दिया था. हालाँकि उस समय कर्फ़्यू लगा हुआ था और आंदोलनकारियों को पुलिस के आंसू गैस और पानी की बौछारों का सामना करना पड़ा. इस घटना के हफ़्तों पहले श्रीलंका के राष्ट्रपति और उनकी सरकार के ख़िलाफ़ आंदोलन शुरू हो गए थे. महंगाई, बेरोज़गारी और ज़रूरी सामानों की ज़बरदस्त क़िल्लत के बीच लोगों का आंदोलन जारी था. लेकिन लोगों के आंदोलन के बीच हफ़्तों तक राजपक्षे इस्ती देने से इनकार करते रहे. लोगों का ग़ुस्सा शांत करने के लिए उनके बड़े भाई और प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे इस्तीफ़ा दे चुके थे. लेकिन गोटाबाया अपना पद छोड़ने के लिए तैयार नहीं हो रहे थे. आख़िरकार लोगों का संघर्ष काम आया और जुलाई 2022 में पूरी दुनिया ने देखा कि कैसे लोगों के आंदोलन की वजह से राजपक्षे को अपमानजनक तरीक़े से जल्दबाज़ी में देश छोड़ना पड़ा. जबकि कुछ महीने पहले तक इसकी कल्पना भी मुश्किल थी. महिंदा राजपक्षे के नेतृत्व में राजपक्षे परिवार पिछले कई साल से श्रीलंका की राजनीति पर अपना शिकंजा कसे हुए थे. महिंदा राजपक्षे ने अपने पहले कार्यकाल में एलटीटीई विद्रोहियों का ख़ात्मा करने में सफलता हासिल की थी. इस जीत ने उन्हें बहुसंख्यक सिंहली आबादी वाले इस देश के ‘रक्षक’ के तौर पर स्थापित करने में मदद की. उनके कट्टर समर्थक उनकी तुलना एक सम्राट से करने लगे. महिंदा राजपक्षे के साथ उनका परिवार भी ताक़तवर होता गया. पहले से ताक़तवर बन चुके महिंदा राजपक्षे ने अपने छोटे भाई गोटाबाया को रक्षा मंत्रालय में सचिव बना दिया. महिंदा के दो और भाई बासिल और चमाल को वित्त मंत्री और श्रीलंकाई संसद का स्पीकर बनाया गया. श्रीलंका के बहुसंख्यक सिंहली राष्ट्रवादियों के बीच इस परिवार को काफ़ी समर्थन था. लिहाजा भ्रष्टाचार,अर्थव्यवस्था के ख़राब प्रबंधन, बड़े पैमाने पर मानवाधिकार उल्लंघन और असहमति रखने वाले लोगों के दमन के बावजूद राजपक्षे परिवार सत्ता में बना रहा

लेकिन 2022 में सबकुछ बदल गया, जब गोटाबाया राजपक्षे की सरकार की कुछ नीतियों के वजह से श्रीलंका हाल के दिनों के अपने सबसे भीषण आर्थिक संकट में फंस गया. आख़िरकार महिंदा के राष्ट्रपति बनने के 17 साल बाद श्रीलंका में लोगों का हुजूम राजपक्षे परिवार के पतन का जश्न मना रहा था. श्रीलंका के राजपक्षे परिवार की कहानी ख़त्म हो चुकी थी. लेकिन क्या ये कहानी वहीं ख़त्म हो गई थी?

महिंदा राजपक्षे के बेटे नमल राष्ट्रपति पद के लिए मैदान में

राजपक्षे परिवार का जो हश्र हुआ, उसके दो साल बाद महिंदा राजपक्षे के बेटे नमल ने 21 सितंबर को होने वाले राष्ट्रपति चुनाव के लए दांव लगाया है. दो साल पहले महिंदा राजपक्षे के ख़िलाफ़ विशाल प्रदर्शन में शामिल यूनिवर्सिटी छात्र लक्षण संदरुवान ने कहा, ”संघर्ष के बाद जिन लोगों को भगा दिया गया था उनका इन चुनावों में खड़ा होना काफी ख़राब बात है.’’ ”इससे ख़राब बात क्या होगी कि कुछ लोग अब भी इस परिवार को वोट देना चाहेंगे.” दूसरी ओर गोटाबाया राजपक्षे तो 50 दिनों बाद ही वापस लौट आए थे. गोटाबाया पहले सिंगापुर और फिर थाईलैंड पहुंचे. फिर वापस श्रीलंका लौट आए. लौटने के बाद उन्हें वो सारी सुविधाएं दी गईं, जो एक पूर्व राष्ट्रपति को मिलती हैं. उन्हें एक आलीशान बंगला दिया गया. साथ ही उनकी सुरक्षा की पूरी व्यवस्था की गई. और इसका पूरा ख़र्च सरकार दे रही है. गोटाबाया राजपक्षे की सरकार के पतन के बाद विपक्षी नेता रनिल विक्रमसिंघे को राजपक्षे के दो साल के बचे हुए कार्यकाल के लिए राष्ट्रपति बनाया गया. एक परिवार (राजपक्षे) के नेतृत्व में काम करने वाली पार्टी श्रीलंका पोडु पेरामुना पार्टी यानी एसएलपीपी का श्रीलंका की संसद में दो तिहाई बहुमत है. इस पार्टी ने विक्रमसिंघे को अपना समर्थन दिया. इस पार्टी के समर्थन से छह बार देश के प्रधानमंत्री रह चुके विक्रमसिंघे अचानक राष्ट्रपति बन गए. जबकि विक्रमसिंघे अपनी यूनाइटेड नेशनल पार्टी के इकलौते सांसद थे. उनकी पार्टी ने 2020 के संसदीय चुनाव में एक ही सीट जीती थी. विक्रमसिंघे का अब पूरा ध्यान देश की अर्थव्यवस्था को दोबारा अपने पैरों पर खड़ा करने पर है. लेकिन उन पर राजपक्षे परिवार को संरक्षण देने के आरोप लग रहे हैं. उन पर ये आरोप लगाए जा रहे हैं कि वो राजपक्षे परिवार को दोबारा गोलबंदी में मदद कर रहे हैं. वो उन्हें मुक़दमे से बचाए हुए हैं. हालांकि विक्रमसिंघे ने इन आरोपों से इनकार किया है.

रनिल विक्रमसिंघे पर राजपक्षे परिवार को बचाने के आरोप कितने सही

विक्रमसिंघे के राष्ट्रपति बनते ही कोलंबो के गाले फेस (विरोध प्रदर्शनों का केंद्र) में जमा प्रदर्शनकारियों को हटाने के लिए सेना तैनात कर दी गई थी. दर्जनों सैनिक प्रदर्शन स्थल में घुस आए थे और उन्होंने वहाँ प्रदर्शनकारियों के टेंट और सामानों को तोड़ना शुरू कर दिया था. इसके महीनों बाद उन लोगों को जेल भेजा गया, जो विरोध प्रदर्शन के दौरान गोटाबाया के पैलेस में घुस कर वहाँ रखी (इस प्रदर्शन के यादगार के तौर पर बेडशीट वगैरह जैसी चीजों) चीजों को उठा ले गए थे. राजनीति विज्ञानी जयदेव युआनगोडा ने कहा, ”रनिल ने राजपक्षे परिवार को लोगों के ग़ुस्से से बचाया. उन्होंने एसएलपीपी की अगुआई वाली पार्लियामेंट कैबिनेट और सरकार की निरंतरता बरकरार रखी है लेकिन वो भ्रष्टाचार को रोकने के लिए कुछ नहीं कर रहे हैं. यहाँ तक कि वो राजपक्षे परिवार के ख़िलाफ़ जांच को भी आगे नहीं बढ़ने दे रहे हैं.” उन्होंने कहा, ”राजपक्षे परिवार पर मानवाधिकार उल्लंघन और युद्ध अपराध के आरोप हैं. इस संबंध में उन्हें दोषी ठहराने के लिए काफ़ी ज़्यादा अंतरराष्ट्रीय दबाव है. लेकिन रनिल विक्रमसिंघे ने उन्हें इस दबाव से बचा रखा है.” लेकिन इसकी वजह से काफ़ी कम संसाधन में अपना जीवन चला रहे श्रीलंकाई आबादी का एक बड़ा हिस्सा ख़ासा नाराज़ है. रनिल विक्रमसिंघे की सरकार ने रसातल में चली गई श्रीलंकाई अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए जो क़दम उठाए हैं, उनसे श्रीलंकाई लोगों को और दिक़्क़्त हो रही है. हालांकि देश में अब पहले जैसी बिजली की क़िल्लत नहीं है लेकिन इसके दाम काफ़ी बढ़ गए हैं. सरकार ने बिजली जैसी ज़रूरी चीज़ों की सब्सिडी ख़त्म कर दी है और लोक कल्याणकारी कार्यक्रमों का ख़र्चा कम कर दिया है. विक्रमसिंघे ने टैक्स दरें बढ़ा दी हैं. इस वजह से लोगों को ज़्यादा टैक्स भी देना पड़ रहा है. सरकार ने राजस्व बढ़ाने के लिए टैक्स दायरा भी बढ़ा दिया है.

विक्रमसिंघे सरकार के कड़े क़दम

कुछ अर्थशास्त्रियों का कहना है कि श्रीलंका की अर्थव्यवस्था में स्थिरता के लिए कड़े क़दम ज़रूरी हैं. दरअसल श्रीलंका पर काफ़ी ज़्यादा विदेशी कर्ज़ है. आईएमएफ़ की शर्तों को पूरा करने के लिए इन्हें ज़रूरी बताया जा रहा है. इसका असर हुआ है. 2022 में जब श्रीलंका में आर्थिक और राजनीतिक संकट चरम पर था तो इसका विदेशी मुद्रा भंडार 2 करोड़ डॉलर का रह गया था लेकिन अब ये बढ़ कर छह अरब डॉलर पर पहुंच गया है. लेकिन इसका लाखों श्रीलंकाई लोगों की ज़िंदगी पर बड़ा असर पड़ा है. श्रीलंका के दस हजार परिवारों का सर्वे करने वाले पॉलिसी रिसर्च संगठन लिरिन एशिया की एक स्टडी का आकलन है कि 2023 में देश के लगभग 30 लाख लोग ग़रीबी रेखा से नीचे चले गए. इससे श्रीलंका में ग़रीबों की संख्या 40 लाख से बढ़ कर 70 लाख हो गई. ये परिवार भूखे रह रहे हैं. उन्हें पैसों की सख़्त ज़रूरत है. ग़रीबी की वजह से वो अपने बच्चों को स्कूल से निकाल रहे हैं. राजपक्षे परिवार का कहना है कि उन्होंने कोई ग़लत काम नहीं किया है. लेकिन 2023 में देश के सुप्रीम कोर्ट ने ये फ़ैसला दिया कि 2019 से 2022 के बीच देश की अर्थव्यवस्था के बुरे हाल के लिए गोटाबाया और महिंदा दोनों के परिवार सीधे तौर पर ज़िम्मेदार हैं. अर्थव्यवस्था के ख़राब प्रबंधन की वजह से ही श्रीलंका में इतना बड़ा आर्थिक संकट आया था.

कोलंबो यूनिवर्सिटी की छात्रा निमेषा हंसिनी ने बीबीसी सिंहला से कहा, “उनकी नज़र में राजपक्षे परिवार देश के आर्थिक संकट के लिए सीधे तौर पर ज़िम्मेदार था क्योंकि उनकी सरकार के दौरान यहाँ विकास कार्यों की आड़ में वित्तीय फ़र्जीवाड़ों को अंजाम दिया गया. इसके बावजूद राजपक्षे परिवार के लिए कुछ नहीं बदला है. सिर्फ़ राजनीतिक ताक़त कम हुई है.” राजपक्षे परिवार के गढ़ माने जाने वाले हम्बनटोटा में खेती करके जीविका चलाने वाली रश्मि कहती हैं, ”मुझे ज़्यादा कुछ नहीं कहना है. लेकिन उन्होंने (राजपक्षे परिवार) जो किया, उसकी वजह से हमें मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है. हमने उन्हें वोट दिया था लेकिन अब कभी नहीं देंगे.” नमल राजपक्षे ऐसे ही लोगों का रुख़ बदलना चाहते हैं. उन्हें उम्मीद है कि ऐसे लोगों का समर्थन वो दोबारा वापस पा लेंगे. नमल का चुनावी अभियान अपने पिता महिंदा राजपक्षे की विरासत के इर्द-गिर्द घूम रहा है. कुछ श्रीलंकाई अब भी महिंदा राजपक्षे को नायक की तरह देखते हैं. इसके बावजूद कि कुछ अंतरराष्ट्रीय संगठन उनके ख़िलाफ़ युद्ध अपराध का मुक़दमा चलाने की मांग कर चुके हैं.

क्या नमल राजपक्षे चुनाव जीत पाएंगे?

संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक़ श्रीलंका में गृह युद्ध के आख़िरी चरण में श्रीलंका सेना ने एक लाख लोगों की हत्या कर दी थी. इनमें 40 हज़ार तमिल नागरिक थे. लेकिन महिंदा राजपक्षे के ख़िलाफ़ इन हत्याओं के लिए कभी मुक़दमा नहीं चलाया गया. उन्होंने ऐसे आरोपों से सीधे इनकार किया है. नमल की रैलियों और उनकी सोशल पोस्ट में महिंदा राजपक्षे की तस्वीरें होती हैं. उनमें अपने पिता के साथ खड़े उनके बचपन की वो तस्वीरें भी हैं. नमल अपने पिता के जैसा दिखने की भी कोशिश करते दिखते हैं. वह महिंदा जैसी ही मूंछें रखते हैं और उनकी पहचान बन गए लाल रंग की शॉल पहनते हैं. उनके अभियानों में इस तरह के नारे लगते हैं, ”हम चुनौतियों से नहीं डरते. उल्टे हम उनका स्वागत करते हैं. ये वो चीज़ हैं, जो मैंने अपने पिता से सीखी हैं.” एक दूसरी पोस्ट में महिंदा राजपक्षे को देशभक्त, बहादुर और दूरदृष्टि वाला बताया गया है. प्रोफ़ेसर युआनगोडा कहते हैं, “मुझे ऐसा लगता है कि नमल राजपक्षे ग़लत नहीं सोच रहे हैं. अपने पिता की विरासत को लोगों के सामने रख कर ही वो उनके जनाधार को बरकरार रख सकेंगे. ये उन्हें चुनावी फ़ायदा दिलाएगा.” ये एसएलपीपी के वोटर आधार को दोबारा खड़ा करने का एक तरीक़ा है. लेकिन कई वोटर नमल राजपक्षे की दलील को मानने को तैयार नहीं दिखते. अभी तक के चुनावी सर्वेक्षणों में नमल देश के सर्वोच्च पद के लिए मज़बूत उम्मीदवार के तौर पर नहीं दिख रहे हैं. चुनाव से जुड़ी नमल के इंस्टाग्राम पोस्ट पर तंज करती हुए एक टिप्पणी थी, “राजपक्षे परिवार का बिल्कुल नया उत्तराधिकारी राष्ट्रपति पद के मंसूबे बांध रहा है. है ना परिवार का पुराना धंधा.”

नमल राजपक्षे की रणनीति क्या है

जमीन पर लोगों की प्रतिक्रियाएं और भी कड़ी हैं. देश के उत्तरी इलाक़े वावुनिया में बसे एक ग्रामीण एचएम सेपालिका बीबीसी सिंहला से कहते हैं, “मैं नमल राजपक्षे को कभी वोट नहीं दूंगा. यहां बिताए हमारी कठिन ज़िंदगी के दिन उनके लिए बद्दुआ की तरह हैं.” हम्बनटोटा में एक दुकान में काम करने वाले निशांति हरापितिया कहते हैं, “इस देश के लोगों ने मिल कर इसलिए संघर्ष किया था कि वो राजपक्षे परिवार से छुटकारा पाना चाहते थे. लेकिन उनके अंदर सत्ता का इतना लालच है कि वो दोबारा आकर वोट मांग रहे हैं.” कुछ दूसरे लोगों का कहना है कि वो नमल को गंभीरता से नहीं ले सकते. पूर्वी श्रीलंका के कथनकुडी के व्यापारी मोहम्मद हलादीन कहते हैं, ”उन्हें हमारा वोट क्यों चाहिए. वो अभी बच्चा है. कोई अनुभव नहीं है. अगर पिता से सहानुभूति रखने वाला उसे वोट ना दे तो वो कभी जीत नहीं पाएंगे.” श्रीलंका के राष्ट्रपति चुनाव में अब सारा फ़ोकस तीन उम्मीदवारों पर है. विपक्ष के नेता सजित प्रेमदासा, वामपंथी नेशनल पीपुल्स पार्टी अलायंस के कुमार दिसानायके और विक्रमसिंघे, जो स्वतंत्र उम्मीदवार के तौर पर लड़ रहे हैं. लेकिन हो सकता है नमल राजपक्षे लंबा खेल खेलना चाहते हों. कई देशों के हाल के चुनावों में ये दिखा है कि अलोकप्रिय दबंग नेताओं के परिवार और सहयोगियों ने दमदार वापसी की है. जैसे फिलीपींस का बोंगबोंग मार्कोस और इंडोनेशिया का सुबियांतो प्राबोवो का परिवार. प्रोफेसर युआनगोडा कहते हैं, ”नमल राजनीतिक रूप से प्रासंगिक बने रहना चाहते हैं. वो एसएलपीपी के वोट बेस को बचाए रखना और 2029 तक राजनीतिक रूप से सक्रिय भी बने रहना चाहते हैं.” 2022 में विरोध प्रदर्शन में हिस्सा ले चुके यूनिवर्सिटी छात्र लक्षण संदरुवान भी इस बात से सहमत हैं. उन्होंने कहा, ”नमल 2029 के चुनाव की ज़मीन तैयार करने के लिए इस बार चुनाव लड़ रहे हैं. वो इस बार राष्ट्रपति बनने के लिए चुनाव नहीं लड़ रहे हैं. लेकिन अगर लोगों ने सोच-समझ कर काम नहीं लिया तो वो एक बार फिर एक राजपक्षे को राष्ट्रपति बना देंगे.”


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editor September 18, 2024
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