


मोदी सरकार 3.0 में कोटा सांसद ओम बिरला लोकसभा अध्यक्ष चुन लिए गए हैं। बिड़ला का लगातार दूसरी बार इस पद पर काबिज होना राजस्थान में बदलाव की राजनीति की तरफ इशारा कर रहा है। विधानसभा चुनाव के बाद प्रदेश की राजनीति में बड़े परिवर्तन देखने को मिले हैं। पहले प्रदेश में पूर्व सीएम वसुंधरा राजे बड़ा पावर सेंटर हुआ करती थीं, लेकिन अब समीकरण पूरी तरह से बदल गए हैं। एक पावर सेंटर बतौर मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा हैं। इसके इतर लोकसभा अध्यक्ष बिरला प्रदेश में नए पावर सेंटर के रूप में नजर आ रहे हैं। बिरला की गिनती मोदी-शाह के नजदीकी नेताओं में होती है।
दरअसल, राजस्थान की राजनीति में पूर्व सीएम वसुंधरा को नजरअंदाज करने का दौर चल रहा है। वसुंधरा राजे को चुनाव के दौरान सीएम फेस घोषित नहीं किया। इसके बाद उनके बेटे दुष्यंत सिंह को मोदी कैबिनेट में जगह नहीं मिली है। लगातार नजरअंदाज किए जाने का दर्द हाल ही में एक कार्यक्रम के दौरान पूर्व सीएम वसुंधरा की जुबान पर भी आ गया। उन्होंने उदयपुर में आयोजित सम्मेलन में कहा कि अब वह वफा का दौर नहीं रहा है। आज तो लोग उसी अंगुली को पहले काटने का प्रयास करते हैं, जिसको पकड़ कर वह चलना सीखते हैं। वसुंधरा राजे के इस बयान से साफ जाहिर है कि राजे पार्टी के अंदर लगातार हो रही अपनी अनदेखी से नाराज हैं।
वसुंधरा राजे विधानसभा चुनाव के बाद से ही प्रदेश में ज्यादा सक्रिय नहीं हैं। लोकसभा चुनाव के दौरान भी वे केवल अपने बेटे दुष्यंत के लोकसभा क्षेत्र झालावाड़ तक ही सीमित रहीं। प्रदेश में स्टार प्रचारक की सूची में शामिल होने के बावजूद राजे झालावाड़ के अलावा एक या दो जगह ही प्रचार के लिए पहुंची थीं। राजनीतिक जानकारों का कहना है, विधानसभा चुनाव के बाद से राजे का कोई भी राजनीतिक बयान सामने नहीं आया था। लेकिन लंबे समय बाद अब राजे ने चुप्पी तोड़ी है। इस बयान के जरिए राजे उनके संरक्षण में आगे बढ़ने वाले नेताओं को निशाने पर लिया है।
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राजस्थान के सियासी जानकारों का कहना है कि लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला भी कभी वसुंधरा राजे के नजदीकियों में हुआ करते थे। इन्हीं नजदीकियों के चलते पहली बार विधायक बनने पर ही बिरला वसुंधरा सरकार में संसदीय सचिव बनने में सफल रहे। जल्द ही बिरला ने दिल्ली में बेहतर संबंधों के आधार पर अपना अलग वजूद बना लिया और 2023 में वसुंधरा के मुकाबले मुख्यमंत्री पद के दावेदारों में गिने जाने लगे। अब वे प्रदेश के राजनीति में वसुंधरा के समकक्ष आकर खड़े हो गए हैं। वे एक नए पावर सेंटर बनकर उभरे हैं।
राजस्थान की राजनीति में अब बिरला की होगी अहम भूमिका
प्रदेश की राजनीति में भविष्य के निर्णयों में अब बिरला की अहम भूमिका होगी। इसके संकेत खुद गृहमंत्री अमित शाह ने 20 अप्रैल को कोटा की रैली के दौरान दिए थे। शाह ने कहा था कि आप ओम बिरला को संसद भेज दो, बाकी जिम्मेदारी हमारी है। बिरला के पदग्रहण के साथ ही प्रदेश में नए राजनीतिक समीकरणों के स्पष्ट संकेत मिल रहे हैं। सीएम भजनलाल शर्मा, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सीपी जोशी, पूर्व नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ समेत कई नेता उन्हें बधाई देने दिल्ली पहुंचे। बिरला 2003 से अब तक तीन बार विधानसभा और तीन बार लोकसभा चुनाव जीत चुके हैं। पीएम मोदी की पसंद और लोकसभा अध्यक्ष के तौर पर पिछले कार्यकाल के बेहतर परफॉर्मेंस को देखते हुए बिरला को दोबारा मौका मिला है। पीएम मोदी संसद में दिए भाषण में भी ओम बिरला की तारीफ कर चुके हैं। बिरला लगातार दूसरी बार स्पीकर बने हैं। यह पांचवी बार है जब कोई स्पीकर एक लोकसभा के कार्यकाल से अधिक इस पद पर रहेगा।