


एनडीए में बीजेपी का बाक़ी के कई दलों के साथ वैचारिक समानता नहीं है.
ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि नरेंद्र मोदी कुर्सी पर बने रहने के लिए चंद्रबाबू नायडू, नीतीश कुमार और चिराग पासवान जैसे सहयोगियों को कैसे साथ में रखेंगे?
इनमें जनता दल यूनाइटेड (जदयू) और तेलगू देशम पार्टी (टीडीपी) अहम हैं, जिन्होंने 16 और 12 सीटें जीती हैं.
हालांकि सात सीटों वाली शिव सेना एकनाथ शिंदे गुट, पांच सीटों के साथ लोक जनशक्ति रामविलास पासवान गुट (लोजपा) और उत्तर प्रदेश की दो सीटें जीतकर संसद में आया राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) भी बीजेपी के लिए महत्वपूर्ण है.
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जेडीयू और टीडीपी बीते वक़्त में बीजेपी की सहयोगी रह चुकी हैं और कुछ मुद्दों पर मतभेद के कारण एनडीए से भी बाहर गई थीं.
वहीं लोजपा में टूट के बाद चिराग पासवान का विरोधी गुट एनडीए का हिस्सा बना था और रालोद प्रमुख तो एनडीए में शामिल होने से पहले इंडिया गठबंधन का हाथ थामते-थामते रुक गए थे.

ऐसे में कहा जा रहा है कि मोदी के लिए इन सभी दलों को एनडीए में बनाए रखना टेढ़ी खीर साबित हो सकती है क्योंकि बीजेपी को इनकी मांगों के सामने झुकना पड़ सकता है.
बुधवार को हुई एनडीए की बैठक के बाद इसके इशारे मिलने लगे हैं. जेडीयू नेता केसी त्यागी ने गुरुवार को सार्वजनिक तौर पर अग्निवीर योजना पर पुनर्विचार की बात की है.
लेकिन ये एक ही मुद्दा नहीं है, जिस पर मतभेद हो सकते हैं. नीतीश और नायडू दोनों ही बिहार और आंध्र प्रदेश के लिए विशेष दर्जे की मांग करते रहे हैं.
मीडिया में इस तरह की बातें भी चल रही हैं हैं कि ये घटक दल अपने लिए कैबिनेट मंत्री की मांग कर रहे हैं