


न्यूयॉर्क टाइम्स ने क्या लिखा है?
अमेरिका से निकलने वाला अख़बार न्यूयॉर्क टाइम्स लिखता है, “नरेंद्र मोदी के सत्ता के बीते 10 सालों में कई ऐसे पल सरप्राइज़ से भरे थे लेकिन जो सरप्राइज मंगलवार की सुबह मिला वो बीते 10 सालों से बिल्कुल था क्योंकि नरेंद्र मोदी को तीसरा टर्म तो मिल गया, लेकिन उनकी पार्टी बहुमत नहीं ला पाई.”
इस हार के साथ ही 2014 के बाद पहली बार नरेंद्र मोदी की वो छवि भी चली गई कि ‘वो अजेय’ हैं.
वॉशिंगटन पोस्ट ने क्या लिखा है?
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अमेरिका से ही निकलने वाले अख़बार वॉशिंगटन पोस्ट ने लिखा है- भारत के मतदाताओं ने नरेंद्र मोदी की लीडरशिप पर एक अप्रत्याशित अस्वीकृति दिखाई है. दशकों के सबसे मज़बूत नेता के रूप में पेश किए जा रहे मोदी की छवि को इस जनादेश ने भेदा है और उनकी अजेय छवि भी ख़त्म की है.
बीजेपी सहयोगियों के साथ भले सरकार बना ले लेकिन साल 2014 के बाद से ये बीजेपी का सबसे कमज़ोर प्रदर्शन है. साल 2014 में मोदी विकास और भ्रष्टाचार को लेकर लोगों के बीच ग़ुस्से की लहर पर सवार हो कर सत्ता में आए और साल 2019 में राष्ट्रवाद और पाकिस्तान के साथ तनाव बड़ी वजह रही.
अलजज़ीरा ने क्या लिखा है
क़तर के प्रसारक अलजज़ीरा ने भी मोदी की छवि को डेन्ट लगने की बात लिखी है.

अलजज़ीरा की रिपोर्ट लिखती है- मोदी सरकार तो बना लेंगे लेंकिन उनकी सरकार अपने सहयोगियों के हाथ में होगी.
साथ ही ये जनादेश बीजेपी की चुनावी नीति पर भी सवाल खड़े करता है. बीजेपी और नरेंद्र मोदी का कैंपेन सांप्रदायिक बँटवारे पर अधिक फोकस था. ऐसे दावे किए गए कि विपक्ष सत्ता में आने पर संसाधन मुसलमानों को दे देगा. लेकिन विपक्ष का कांपेन मोदी सरकार की स्कीम और उनकी आर्थिक विफलता पर आधारित रहा.
टाइम पत्रिका का क्या कहना है?
अमेरिकी की चर्चित पत्रिका टाइम ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि एग्ज़िट पोल और राजनीतिक पंडितों ने मोदी की जीत का अनुमान लगाने में थोड़ी जल्दबाज़ी कर दी. सवाल था कि मोदी तीसरी बार सरकार बना लेंग लेकिन बीजेपी की अपने दम पर कितनी सीटें आएंगीं.
इसका जवाब मंगलवार को मिला. जो नतीजे आए हैं, उसमें मोदी की पार्टी बहुमत पाने वाली पार्टी तो नहीं रही है. उन्हें 240 सीटों पर जीत मिली है. जो 2019 के आंकड़ों से बहुत कम है, जब बीजेपी को अकेले 303 सीटें मिली थीं.