


जयपुर विधानसभा चुनाव के लिए राजनीतिक दलों के टिकटों का पिटारा खुलने वाला है। अगले सप्ताह तक कांग्रेस और भाजपा की पहली सूची आने की उम्मीद है। दोनों दलों में टिकट के दावेदारों की धडक़नें बढ़ी हुई हैं। ऐसे में प्रदेश की राजनीति में सक्रिय युवाओं की बेचैनी भी बढ़ गई है। क्योंकि राजनीतिक दलों का शीर्ष नेतृत्व युवाओं को प्राथमिकता देने की बात तो जोर -शोर से करता है, लेकिन जब टिकट वितरण होता है तो युवाओं को निराशा हाथ लगती है।
देश में 65 फीसदी आबादी 35 साल से कम आयुवर्ग की है। लिहाजा युवाओं को उस अनुपात में राजनीतिक प्रतिनिधित्व क्यों नहीं मिले? युवाओं को अपने आलाकमान से उम्मीदें तो इस बार भी हैं। राजनीतिक दलों के पिछले इतिहास पर नजर डालें तो युवाओं को आश्वासन तो पूरे मिले, मगर टिकट आधे-अधूरे। देखना दिलचस्प होगा कि इस बार का पिटारा युवाओं की उम्मीदों पर कितना खरा उतरता है? पिछले विधानसभा चुनाव में 200 में से सिर्फ 17 विधायक 35 साल तक की उम्र के थे।
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युवा यानी 35

कांग्रेस और भाजपा के युवा संगठनों में पदाधिकारियों की अधिकतम उम्र 35 तय कर रखी है। मतलब साफ है कि ये दल 35 साल आयु तक के कार्यकर्ताओं को ही युवा मानते हैं। दोनों दलों के युवा संगठन हर बार युवाओं को अधिक टिकट देने की मांग करते हैं, लेकिन नतीजा उनके पक्ष में नहीं निकलता।
2013 में भी खाली हाथ
2013 के राजस्थान विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 200 में से सिर्फ 12 युवाओं पर दांव खेला था तो कांग्रेस ने सिर्फ 10 युवाओं को प्रत्याशी बनाया था। मतलब साफ है कि भारतीय जनता पार्टी ने 10 सालपहले सिर्फ 6 प्रतिशत युवाओं को और कांग्रेस ने 5 प्रतिशत युवाओं को ही टिकट दिए थे।