बीकानेर। दो भाइयों ने 50 साल पहले कचहरी के पास माजीसा के बास में जायदाद (दुकानें) खरीदी। एक दुकान में रह रहे किरायेदारों ने ना तो प्रॉपर्टी छोड़ी और ना ही किराया दिया। कोर्ट ने 42 साल बाद इस विवाद का फैसला प्रॉपर्टी मालिक के हक में सुनाया और किरायेदारों को प्रॉपर्टी छोडऩे के साथ ही न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग करने पर तत्काल 10 लाख रुपए मालिक के वारिसों को भुगतान के आदेश दिए हैं। कचहरी परिसर के पास माजीसा का बास क्षेत्र में भंवरलाल अग्रवाल की प्रॉपर्टी थी जिसमें दुकानें बनी थी। नंदकिशोर ने 21 जून, 72 को जरिये बैनामा उसे खरीद कर उसी दिन सगे भाई मूलचंद और खुशीराम को बेच दिया। एक दुकान दो भाई आज्ञारामसिंह और पुष्करसिंह ने किराये पर ले रखी थे। उन्होंने ना तो किराया दिया और ना ही जायदाद छोड़ी। मूलचंद-खुशीराम की ओर से वर्ष, 81 में सिविल कोर्ट में वाद दायर किया। ट्रायल के दौरान वादी मूलचंद-खुशीराम का स्वर्गवास हो गया। उनके वारिस कोर्ट पहुंचने लगे। अतिरिक्त सिविल जज कनिष्ठ खंड संख्या दो ने 28 जनवरी, 08 को फैसला रतनलाल के पक्ष में दिया। लेकिन, प्रतिवादियों ने जिला न्यायालय में अपील दायर की जहां सुनवाई के दौरान अपीलार्थियों आज्ञाराम और पुष्करसिंह का भी स्वर्गवास हो गया। लड़ाई जारी रही। बाद में मामला अपर जिला न्यायाधीश संख्या 5 के पीठासीन अधिकारी अनुभव सिडाना को रेफर किया गया। न्यायालय ने 42 साल से विचाराधीन केस का फैसला रतनलाल के हक में दिया है। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि अपीलार्थियों ने वर्ष, 72 के बाद से जायदाद का कब्जा नहीं दिया। वर्ष, 77 के बाद से किराया भी नहीं दिया और 51 सालों से न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग किया। जजों और गैर न्यायिक कर्मचारियों की कम संख्या न्याय में देरी का कारण पिछले साल देश में जजों की स्वीकृत संख्या प्रति 10 लाख आबादी पर 21.03 थी। जजों की कुल स्वीकृत संख्या सर्वोच्च न्यायालय में 34, उच्च न्यायालयों में 1108, जिला न्यायालयों में 24631 थी। विधि आयोग और न्यायमूर्ति वीएस मलीमथ की समिति ने जजों की संख्या प्रति 10 लाख आबादी पर 50 तक बढ़ाने की सिफारिश की थी। जजों के रिक्त पदों के कारण न्यायालयों में पूरी क्षमता से काम नहीं हो पाता। पिछले साल देश में जजों की वास्तविक संख्या प्रति 10 लाख आबादी पर 14.4 थी। यह संख्या वर्ष, 16 में 13.2 थी। यूरोप में जजों की संख्या प्रति 10 लाख आबादी पर 210, अमेरिका में 150 है। गैर न्यायिक कर्मचारियों के पद भी रिक्त हैं। अनेक राज्यों में वर्ष, 18-19 में 25 प्रतिशत पद रिक्त थे।

