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Khabar21 > Blog > बीकानेर > चरित्र है तो सबकुछ हैे-आचार्य श्री विजयराज जी म.सा.
बीकानेर

चरित्र है तो सबकुछ हैे-आचार्य श्री विजयराज जी म.सा.

editor
editor Published August 17, 2022
Last updated: 2022/08/17 at 7:48 PM
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Khabar 21 News

चर्चा और चर्या मिलकर करती चरित्र का निर्माण- आचार्य श्री विजयराज जी म.सा.

तरना है तो सत्य का हाथ पकड़ो-आचार्य श्री विजयराज जी म.सा.

बीकानेर। महापुरुष फरमाते हैं, आचार्यों के पास आगम का बल होता है, वे उस आगम के बल से विश्व का कल्याण करते हैं। जैन धर्म में चार मूलागम हैं, इनमें से दूसरे आगम दश्वैकालिक सूत्र पर व्याख्यान कार्यक्रम हो रहा है। इसमें चर्चा भी होनी है और चर्या के बारे में भी बताया गया है। चर्चा और चर्या मिलकर ही हमारे चरित्र का निर्माण करती है। श्री शान्त क्रान्ति जैन श्रावक संघ के 1008 आचार्य श्री विजयराज जी महाराज साहब ने यह उद्गार व्यक्त किए। मंगलवार को सेठ धनराज ढ़ढ्ढा की कोटड़ी में चल रहे नित्य प्रवचन के दौरान महाराज साहब ने  सत्य विषय पर महत्वपूर्ण जानकारी श्रावक-श्राविकाओं को दते हुए चरित्र के निर्माण पर ध्यान देने की बात कही।
आचार्य श्री ने कहा कि चरित्र है तो सबकुछ है, चरित्र के अभाव में कुछ भी नहीं है। महाराज साहब ने इसका उदाहरण देते हुए बताया कि जिस प्रकार एक हॉल मकान से बड़ा नहीं होता, हॉल से बड़ा कमरा नहीं होता, कमरे से बड़ा दरवाजा नहीं होता और दरवाजे से बड़ा कूंट नहीं होता तथा कूंट से बड़ा ताला नहीं होता एवं ताले से बड़ी चाबी नहीं होती है। चाबी छोटी सी होती है और बड़े तालों को खोल देती है। ठीक वैसे ही भाग्य का ताला पुरुषार्थ की चाबी खोलती है।  आप सौ गलत चाबियां लगाओ ताला नहीं खुलेगा। लेकिन एक चाबी सही लगते ही ताला एक बार में खुल जाता है। ठीक इसी प्रकार चरित्र की चाबी  हमारा भाग्योदय करती है। इसके लिए जरूरी है कि हम सत्य को आत्मसात करें,  जब तक हम सत्य को आत्मसात नहीं करेंगे, हमें साता की प्राप्ती नहीं होगी। साता की अनुभूति साता के उदय से होती है। इसलिए साता का बंध करना चाहते हो तो सत्य में रमण करो।
आचार्य श्री ने दोहा सुनाते हुए कहा कि  ‘सांच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप, जाके हद्धय सांच है, बाके हद्धय आप’। आचार्य श्री विजयराज जी महाराज साहब ने बताया कि साता वेदनीय कर्म के बंध में 15 बोल हैं। इसका चौथा बोल सत्य है। सत्य का हाथ पकड़ो, सत्य का साथ छोड़ दिया तो डूब जाओगे।  सत्य को देखा नहीं जा सकता, सत्य को जाना भी नहीं जा सकता लेकिन सत्य को जीया जा सकता है। सत्य का आदर करो, जो सत्य का आदर करता है वह शक्तिशाली होता है। आगमों का सार शील, सत्य और सदाचार है। महाराज साहब ने भजन ‘सत्य की पूजा करो सब, सत्य ही वरदान है, पापियों को पार करता, सत्य ही वरदान है’ गाकर प्रवचन श्रृंखला को विराम दिया।
दश्वैकालिक सूत्र पर व्याख्यान कार्यक्रम आयोजित हुआ
दश्वैकालिक सूत्र पर बुधवार को सेठ धनराज ढ़ढ्ढा की कोटड़ी में व्याख्यान कार्यक्रम आयोजित हुआ। श्री शान्त क्रान्ति जैन श्रावक संघ के 1008 आचार्य श्री विजयराज जी महाराज साहब के सानिध्य में हुए जैन दर्शन के आगम पर विश्व भारती शान्ति निकेतन (प. बंगाल)के प्रोफेसर जमनाराम भट्टाचार्य का व्याख्यान दश्वैकालिक सूत्र पर रहा। इसमें उन्होंने सूत्र की नियुक्त, टीकाएं, भाष्य, चूर्णि पर गहनता से प्रकाश डाला। भट्टाचार्य ने कहा कि साधु के जीवन में श्रावक-श्राविकाओं की वजह से कोई  कठिनाई ना आए, यही दश्वैकालिक सूत्र के मूल में है। यह सूत्र जितना उपयोगी साधु-साध्वियों के लिए है, उतना ही उपयोगी श्रावक-श्राविकाओं के लिए भी है।  प्रोफेसर जमनाराम भट्टाचार्य ने बताया कि इसमें दस अध्ययन के विषय हैं। प्रथम द्रुमपुष्पिका में उत्कृष्ट मंगल धर्म का माधुकरी वृति से आचरण, द्वितीय श्रमण्यपूर्वक में संयम में धृति तक श्रमणधर्म के पालन से पूर्व काम-राग का निवारण, तृतीय अध्ययन लुल्लकाचार कथा में आचार और अनाचार का विवेक, चतुर्थ अध्याय में षडजीवनिका में नवदीक्षित के लिए नवतत्व में निरुपण, पंचम अध्याय में पिण्डे, गवेषणा, ग्रहणैषणा और भौगेषणा की शुद्धीपूर्वक निर्दोष भिक्षा का विधान, षष्टम में महाचार कथा में व्रतष्टक कायषटक और अकल्प की प्ररुपणा तथा सप्तम में वाक्यशुद्धी में अहिंसा एवं सत्य आधारित भाषा के विवेक पर अष्टम में आचार प्रणीधि के अंतर्गत आचार में इन्द्रियों व मन को सुप्रविहित करने एवं नवम अध्याय में विनय समाधि के अंतर्गत लोकोत्तर  विनय की अराधना का निरुपण और दशम में सदभिक्षु के गुणों का प्रतिपादन के साथ  दो चुलिकाएं प्रथम चूलिका में श्रमण धर्म में रति उत्पन्न करने वाली तथा द्वितीय में विविक्त चर्चा चूलिका में प्रति स्त्रोत गमन रूप मोक्ष मार्ग के उपाय पर विवेचना की गई। प्रोफेसर भट्टाचार्य ने बताया कि दश्वैकालिक सूत्र में साधु कैसे रहे…?, चले कैसे…?,बैठे कैसे…?, इन और इन जैसे विषयों पर ध्यान दिया गया है। प्रोफेसर भट्टाचार्य ने अपने संबोधन में कहा कि दश्वैकालिक सूत्र  से भी आगे एकादस सूत्र श्रावकों के लिए लिखने की आवश्यकता है। प्रोफेसर ने आचार्य श्री से आग्रह किया कि वे श्रावकों के लिए इस परम्परा को आगे बढ़ाएं।

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