

अपने को कभी दीन, हीन, असहाय मत समझो
नीति से,ईमानदारी और पारदर्शीता से आगे बढ़ें- आचार्य श्री विजयराज जी
Khabar 21 News – बीकानेर। स्वतंत्रता दो तरह की होती है, एक भौतिक और दूसरी आध्यात्मिक आज देश की आजादी का दिन है, देश आजादी का 75 वां वर्ष मना रहा है। हालांकि यह भौतिक स्वतंत्रता है, लेकिन हमारी स्वतंत्रता आध्यात्मिक होनी चाहिए। भगवान महावीर कहते हैं कि बंधनों को जानें, उन्होंने पांच बंधन बताते हुए कहा है कि व्यक्ति की आत्मा इन पांच बंधनो से जकड़ी हुई है। इन बंधनों को त्यागना ही असली स्वतंत्रता है। श्री शान्त क्रान्ति जैन श्रावक संघ के 1008 आचार्य श्री विजयराज जी म.सा. ने यह बात सोमवार को सेठ धनराज ढ़ढ्ढा की कोटड़ी में चल रहे चातुर्मास के नित्य प्रवचन में कही। महाराज साहब ने कहा कि यह पांच बंधन है मिथ्यात्म, अव्रत, कषाय, भोग, परमार्थता के बंधन से मुक्त होने पर ही आध्यात्मिक स्वतंत्रता मिलती है। अगर हम सम्यक दर्शन रखते हैं तो हमें पहली स्वतंत्रता प्राप्त हो जाती है। सम्यक दर्शन होने पर जीव मिथ्यात्मक की परतंत्रता से मुक्त हो जाता है। यह पहला चरण है। इसके बाद दूसरे चरण में जीव-अजीव, धर्म-अधर्म, सत्य- असत्य की पहचान होने वाला जीव अणुव्रत धारी हो जाता है। महाव्रतधारी अव्रत की परतंत्रता से मुक्त हो जाता है। तीसरी है कषाय इसमें सजगता आ जाने पर जीव अप्रमत होकर कसाय बंधनों को छोडऩे लगता है।
राष्ट्रधर्म पर व्याख्यान देते हुए आचार्य श्री विजयराज जी महाराज ने कहा कि राष्ट्रधर्म भी एक प्रकार का धर्म है। भगवान महावीर ने धर्म के दस प्रकार बताए और उनकी व्याख्या की थी, उनमें एक धर्म राष्ट्रधर्म था।
भारत की राष्ट्रीयता पर कहीं पर पढ़ा था कि बचपन जापान का, यौवन अमेरिका का और बुढ़ापा भारत का, जिसे भारतीय संस्कृति, संस्कार मिल जाते हैं उसका बुढ़ापा संवर जाता है। भारत सदैव उभरता, प्रगतिशील, विचाराधीन और उन्नतशील देश रहा है। महाराज साहब ने कहा कि भारत को आजादी अहिंसक शैली से मिली, अहिंसा और सत्य के बल पर देश के पुरोधाओं ने देश को आजाद कराया। हम अच्छाई के पक्षधर हैं। भारत ने सबको सम्मान दिया, सबको स्थान दिया यह भारत की विशेषता है।
देश की आजादी रहे, समृद्धी रहे, देश आगे बढ़ता रहे, इसके लिए धर्म और गुरु का सम्मान होना चाहिए। संतो की पूजा, सत्कार होनी चाहिए। जो ऐसा नहीं करता वह भारतीय नहीं है। आज के दिन मेरी यही कामना है कि भारत के लोग नीति में, ईमानदारी में, पारदर्शीता में
आगे बढ़ते रहें।
महाराज साहब ने विषय को आगे बढ़ाते हुए बताया कि भारत आज भौगोलिक रूप से आजाद है लेकिन आध्यात्मिक रूप से भारत को अभी भी आजादी नहीं मिली है। क्योंकि भारत अनुकरणशील देश है। आचार्य श्री ने कहा कि सत्संग, स्वाध्याय, आत्मचिंतन ही हमें परतंत्रता से मुक्ति दिला सकती है। प्रवचन के अंत में महाराज साहब ने देशभक्ति भजन ‘सिकंदर भी आए, कलंदर भी आए, ना कोई रहा है, ना कोई रहेगा, मेरा देश आजाद होकर रहेगा, प्रताप ने जान दी वतन पे, शिवा ने भगवा उड़ाया गगन पे’ सुनाकर देशप्रेम को अभिव्यक्त किया।
मुमुक्षु सुश्री मनीषा
छत्तीसगढ़ का सोमवार को सेठ धनराज ढ़ढ्ढा की कोटड़ी में आचार्य विजयराज जी महाराज साहब के सानिध्य में आज्ञा पत्र उनके संसार पक्षी नाना ने पारिवारिक जनों का आज्ञापत्र संघ के पदाधिकारियों को सौंपा, जिसका वाचन सभा में संघ की ओर से किया गया। मुमुक्षु मनीषा ने अपना प्रतिज्ञा पत्र सभा में पढक़र संघ के प्रति निष्ठा जताई। इस पर पूरे पण्डाल में ‘संयम जीवन पार है, बाकी सब बेकार है’ और ‘जय-जयकार, जय-जयकार, विजय गुुरु की जय-जयकार’ के उद्घोष से पूरा सभा स्थल गुंजायमान हो गया। महिलाओं ने भक्ति गीत ‘केसरिया-केसरिया, आज हुआ मन केसरिया’ गाया। वहीं संघ की ओर से मुमुक्षु मनीषा के संसारपक्षी लोगों का शॉल ओढ़ाकर एवं माला पहनाकर बहुमान किया गया।
बाहर से आने वाले श्रावकगणों का क्रम जारी
आचार्य श्री विजयराज जी महाराज साहब के दर्शनार्थ और उनके मुखारविन्द से जिनवाणी सुनने के लिए मुंबई, अहमदाबाद, सूरत, छतीसगढ़, नगरी उदयपुर, अहमदाबाद सहित अन्य स्थानों से आने वाले श्रावक-श्राविकाओं का क्रम जारी रहा। श्री शान्त क्रान्ति जैन श्रावक संघ के अध्यक्ष विजयकुमार लोढ़ा ने बताया कि आए हुए अतिथियों का स्वागत संघ द्वारा किया गया।
