

रणथंभौर त्रिनेत्र गणेश मंदिर का इतिहास –
त्रिनेत्र गणेश का मंदिर राजस्थान के सवाईमधोपुर जिले से 12 किलोमीटर दूर रणथंभौर किले में स्थित हैं। यह मंदिर हजारो साल पुराना हैं। इस मंदिर का निर्माण 10वीं सदी में रणथंभौर के राजा हमीर ने करवाया था। युद्ध के दौरान राजा के सपने में गणेश जी आए और उन्हें आशीर्वाद दिया। राजा की युद्ध में विजय हुई और उन्होंने किले में मंदिर का निर्माण करवाया। पूरी दुनिया में यह एक ही मंदिर है जहां श्रीगणेश अपने पूर्ण परिवार, दो पत्नी -रिद्धि और सिद्धि और दो पुत्र -शुभ व लाभ, के साथ विराजमान हैं। यही नहीं यहां रोज 10 किलो से ज्यादा पत्र आते हैं।
इस मंदिर के बारे में रामायण में भी उल्लेख मिलता है। रामायण काल और द्वापर युग में भी यह मंदिर था। कहा जाता है कि भगवान राम ने लंका की और कूच करते समय भगवान त्रिनेत्र गणेश जी का अभिषेक इसी रुप में किया था। इसी तरह की और भी सच्ची कहानियां इस मंदिर से जुड़ी आज भी कही सुनी जाती है।
कहा जाता है कि 1299 में राजा हमीर और अलाउद्दीन खिलजी के बीच में युद्ध चला। युद्ध शुरू हुआ तो हम्मीर ने प्रजा और सेना की जरूरतों को देखते हुए ढेर-सा खाद्यान और जरूरत की वस्तुओं को सुरक्षित रखवा लिया था। पर युद्ध लंबे अरसे तक खिच जाने की वजह से हर चीज की तंगी होने लगी थी। राजा, जो गणेश जी का भक्त था, हताश और परेशान हो उठा। तभी राजा हमीर के सपने में भगवान गणेश ने आश्वासन दिया कि उनकी विपत्ति जल्द ही दूर हो जाएगी। उसी सुबह किले की दीवार पर त्रिनेत्र गणेश जी की मूर्ति अंकित हो गई। जल्द ही युद्ध समाप्त हो गया। इसके बाद हमीर राजा ने मंदिर का निर्माण करवाया। यह मंदिर 1579 फीट ऊंचाई पर अरावली और विंध्याचल की पहाड़ियों में स्थित है।
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ऐसी है भगवान गणेश की मूर्ति –
यहां पर भगवान गणेश की जो मूर्ति है, उसमें भगवान की तीन आंखें हैं। यहां भगवान अपनी पत्नी रिद्धि और सिद्धि और अपने पुत्र शुभ-लाभ के साथ विराजित हैं। भगवान गणेश के वाहन मूषक (चूहा) भी मंदिर में है। गणेश चतुर्थी पर किले के मंदिर में भव्य समारोह मनाया जाता है और विशेष पूजा अर्चना की जाती है।
इस गणेश मंदिर में रोज आते हैं 10 किलो पत्र –

दूर दूर से लोग यहां अपने बेटे-बेटियों की शादी का पहला निमंत्रण गणेश जी को देकर जाते हैं। आजकल कार्ड छपने लगे हैं नहीं तो पहले के जमाने में उस समय के चलन के मुताबिक पीले चावल निमंत्रण के रूप में दिए जाते थे। यहीं नहीं उन्हें भगवान तक पहुंचाने के लिए 5 किमी की दुर्गम चढाई चढना पड़ता था। मजे की बात यह है कि इन पत्रों को पोस्ट्मैन (डाकिया) इस दुर्गम किले की ऊंचाई पर जंगली रास्तों से होता हुआ नित्य पहुंचाता है।
सभी पत्रों को पुजारी भगवान गणेश को पढकर सुनाता है –
मंदिर में पहुंचते ही यदि पत्र हिंदी या अंग्रेजी में हो तो पुजारी जी उसे खुद पढ़ कर गणेश जी को सुनाते हैं पर यदि किसी और भाषा में पत्र लिखा गया हो तो उसे खोल कर गणेश जी के सामने रख दिया जाता है। कई लोग पत्रों द्वारा ही अपनी व्यथा भगवान को लिख भेजते हैं, और कहते हैं कि गणेश जी उनकी व्यथा पत्र द्वारा सुनकर दूर कर देते हैं। लोगो मे ऐसी मान्यता है।
क्यों भेजा जाता है भगवान गणेश को पत्र –
कहते हैं जब श्री कृष्ण जी और रुक्मणी का विवाह निश्चित हुआ तो भूल-वश गणेश जी को निमंत्रण नहीं भेजा जा सका। इससे उनके वाहन मूषक को क्रोध आ गया और मूषक सेना ने बारात के पूरे रास्ते को ऐसा काट-कुतर दिया कि उस पर चलना असंभव हो गया। इस रुकावट को दूर करने के लिए भगवान गणेश से प्रार्थना की गई और उन्हें खुश करने के बाद ही विवाह संपन्न हो पाया। कहते हैं तब से गणेश जी को पहला निमंत्रण भेजने की यह प्रथा चली आ रही है।